
पितृ पूजा का पर्व:अगहन के शुक्ल पक्ष की दूसरी तिथि पर प्रकट हुए थे पितर, इस दिन श्राद्ध करने से एक साल तक तृप्त हो जाते हैं पितृ
लक्ष्मी नारायण संहिता के मुताबिक अगहन महीने के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को पितरों की उत्पत्ति हुई थी। नारद पुराण का कहना है कि इस तिथि पर श्राद्ध के साथ पितरों की पूजा करने से आरोग्य और समृद्धि मिलती है। ये तिथि इस बार 25 नवंबर, शुक्रवार को रहेगी।
इस दिन तीर्थ या पवित्र नदियों के पानी से नहाकर पितरों की पूजा करने का विधान है। पुराणों का कहना है कि भगवान विष्णु की पूजा करने से पितरों का संतुष्टि मिलती है। इसलिए इस तिथि पर श्रीकृष्ण और विष्णु पूजा करने का भी महत्व है।
ऐसे करें पितरों के लिए विशेष पूजा
चांदी या तांबे के लोटे में पानी, दूध, जौ, तिल, चावल और सफेद फूल मिलाएं। इस पानी को हथेली में लेकर अंगूठे की तरफ से पितरों के लिए किसी बर्तन में छोड़ें। ऐसा करते हुए पितृ देवताभ्यो नम: मंत्र बोलते जाएं। ऐसा पांच या ग्यारह बार करें। उसके बाद ये जल पीपल में चढ़ा दें।
मार्गशीर्ष अमावस्या के दिन संभव हो तो व्रत रखें और क्षमता अनुसार, जरूरतमंदों में अन्न, वस्त्र आदि का दान करें। सुबह जल्दी तांबे के लोटे में पानी, दूध, अक्षत, जौ और तिल मिलाकर पीपल में चढ़ाएं और घी का दीपक लगाएं। इसके बाद पीपल की परिक्रमा करने से पितरों को संतुष्टि मिलती है।
मान्यता है कि इस दिन भगवान विष्णु की विधिवत पूजा और व्रत करने से सभी कामनाएं पूर्ण होती हैं। इसके साथ ही इस दिन भगवान सत्यनारायण की कथा सुनने से परेशानियों से मुक्ति मिलती है।
पितरों के लिए दान
अगहन महीने की द्वितीया पर जरूरतमंद लोगों को चावल, घी, शक्कर, गुड़ और तिल का दान देने का विधान है। साथ ही गरम कपड़े और जूते-चप्पल भी देने चाहिए। इस दिन गाय, कुत्ते और कौवे को खीर-पुड़ी खिलानी चाहिए। साथ ही किसी ब्राह्मण को पेटभर खाना खिलाने से पितरों का संतुष्टि मिलती है।
