बजट 2023-24 व्यापक आबादी के लिए भुखमरी और अतिधनाढ्यो के हाथों में संपत्ति का केंद्रीकरण बढ़ानेवाला है. इस बजट में रोजगार के सवाल को ही गायब कर दिया गया है और मनरेगा के लिए आबंटित राशि 60000 करोड़ अब तक का न्युनतम आबंटन है. बजट में टैक्स-सीमा 5 लाख से 7 लाख किया जाना मध्यम वर्ग को झांसापट्टी देने के अलावे कुछ नहीं है. फसलों के समर्थन मूल्य की मांग पर विचार करने से इंकार करने की मोदी की जिद भी इस बजट में दिखाई पड़ती है.
जनता पर अप्रत्यक्ष करों के बोझ को बढ़ाया गया है. धनाढ्यों और कॉरपोरेटों को इस बजट में प्रोत्साहन के नाम पर छूट मिली है. अडाणी घोटाले के इस दौर में बैंकों के बढ़ते एनपीए और कॉरपोरेट घोटालों को लेकर बजट में कहीं जिक्र तक नहीं है और इसके प्रति सतर्कता के भी कोई लक्षण नहीं हैं. बजट में ग्रामीण विकास, शिक्षा और स्वास्थ्य पर भी खासी कटौतियां की गई. इन कटौतियों से किसे लाभ होगा, यह छिपी हुई बात नहीं है. राशन के मामले में बजट के पहले ही अनाज की कटौती की जा चुकी है. गैस कनेक्शन के बारे में घोषणाओं की हकीकत सरकारी आंकड़ों के अनुसार यह है कि 9.7 करोड़ कनेक्शन में महज 4.13 करोड़ लोग ही दुबारा गैस भरवा सके.
झारखंड जैसे पिछड़े राज्य के आर्थिक जरूरतों पर भी बजट खाली हाथ है. केंद्र-राज्य के स्वस्थ संघीय संबंधों पर यह बजट चोट करती है. पिछले दो-तीन वर्षों से झारखंड के विकास योजनाओं में केंद्र की भागीदारी नकारात्मक रही है. एचईसी जैसे मातृ-उद्योग समेत अन्य सार्वजनिक और नष्ट हो रहे छोटे-मंझोले उद्योगों को खड़ा कर ही बड़े पैमाने पर रोजगार पैदा किया जा सकता है, लेकिन बजट में इस समस्या की कोई सुधि नहीं ली गई है.
